Friday, August 28, 2015

*****कलयुग में इस जगह विराजमान हैं भगवान विष्णु*****

***कलयुग में इस जगह विराजमान हैं भगवान विष्णु***



भारत के सबसे प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में से एक तिरुपति दक्षिण भारतीय वास्तुकला और शिल्प कला का अद्भूत उदाहरण है। आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित यह जगह सालों से श्रद्धालुओं के लिए एक पवित्र तीर्थस्थल रहा है। इस धार्मिक स्थल को मंदिरों का शहर भी कहा जाता है। वेंकटेश्वर मन्दिर तिरुपति का मुख्य आकषर्ण सात पर्वतों में से एक वेंकटाद्रि पर बना भगवान विष्णु का प्रसिद्ध तिरुपति वेंकटेश्वर मंदिर है। इसे सात पर्वतों का मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। दरअसल, तिरुमला के चारों ओर स्थित पहाडिय़ां, शेषनाग के सात फनों के आधार पर बनी सप्तगिरि कहलाती हैं। वेंकटेश्वर का मंदिर इन्हीं सप्तगिरि की सातवीं पहाड़ी पर स्थित है, जो वेंकटाद्रि के नाम से लोकप्रिय है। समुद्र तल से 2500 फीट ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर अपनी भव्यता और विशालता के लिए विश्व विख्यात है। यह मंदिर हजारों मजबूत स्तंभों से घिरा हुआ है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान वैंकटेश्चर की प्रतिमा स्थापित है। 

ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में स्थापित भगवान वेंकटेश्वर की मूर्ति में ही प्रभु बसते हैं और वे यहां समूचे कलियुग में विराजमान रहेंगे। कहा जाता है कि इस मंदिर के निर्माण में चोल, होयसल और विजयनगर के राजाओं का योगदान खास रहा है। वैसे तो मंदिर में देखने के लिए बहुत कुछ है लेकिन- कृष्ण देवर्या मंडपम, रंग मंडपम तिरुमला राय मंडपम, आईना महल आदि मंदिर परिसर में मुख्य दर्शनीय स्थल हैं।

पुष्करणी कुंड ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु ने कुछ समय के लिए तिरुमला स्थित स्वामी पुष्करणी नामक कुंड के किनारे निवास किया था। तब के बाद से यह कुंड सबके लिए पवित्र बन गया। वैंकटेश्चर मंदिर में पवेश करने से पहले श्रद्धालु इस कुंड के पवित्र पानी में डुबकी लगाते हैं। कहा जाता है कि इस कुंड में स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं। भक्तों की भीड़ यह मंदिर श्रद्धालुओं में बहुत ही ज्यादा प्रसिद्ध है। इसकी प्रसिद्धि का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि लाखों की संख्या में तीर्थयात्री भगवान वैंकटेश्चर के दर्शन के लिए आते हैं और चढ़ावा भी चढ़ाते हैं। एक अनुमान के मुताबिक प्रतिदिन इस मन्दिर में एक से दो लाख श्रद्धालु आते हैं, जबकि किसी खास अवसर पर श्रद्धालुओं की संख्या लगभग 5 लाख तक पहुंच जाती है। दस दिन तक चलने वाले ब्रह्मोत्सवम में यहां भक्तों की भीड़ अपनी चरम पर रहती है। कैसे पहुंचे वेंकटेश्वर मंदिर जाने वाले श्रद्धालु हवाई जहाज, रेल, बस आदि से तिरुपति पहुंच सकते हैं। हवाई मार्ग से जाने वाले लोग रेनिगुंता हवाई अड्डे के लिए टिकट कटा सकते हैं जबकि रेल मार्ग को अपनाने वाले लोग तिरुपति रेलवे स्टेशन उतरकर मंदिर के दर्शन के लिए ऑटो-रिक्शा, टैक्सी और बस का सहारा ले सकते हैं। 

Tuesday, August 25, 2015

*****श्रीवेङ्कटेश मङ्गलाष्टकम् ॥*****

*****श्रीवेङ्कटेश मङ्गलाष्टकम् ॥*****
*****श्रीवेङ्कटेश मङ्गलाष्टकम् ॥*****
*****श्रीनिवास गोविन्द श्री वेङ्कटेश गोविन्द ।*****
******भक्त वत्सल गोविन्द भागवत प्रिय गोविन्द ।******
******नित्य निर्मल गोविन्द नील मेघ श्याम गोविन्द ।******
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******ॐ नमो भगवते वासुदेवाय*****ॐ नमो भगवते वासुदेवाय*****



*****श्रीवेङ्कटेश मङ्गलाष्टकम् ॥*****

श्रीक्षोण्यौ रमणीयुगं सुरमणीपुत्रोऽपि वाणीपतिः
पौत्रश्चन्द्रशिरोमणिः फणिपतिः शय्या सुराः सेवकाः ।
तार्क्ष्यो यस्य रथो महश्च भवनं ब्रह्माण्डमाद्यः पुमान्
श्रीमद्वेङ्कटभूधरेन्द्ररमणः कुर्याद्धरिर्मङ्गलम् ॥ १॥
यत्तेजो रविकोटिकोटिकिरणान् धिक्कृत्य जेजीयते
यस्य श्रीवदनाम्बुजस्य सुषमा राकेन्दुकोटीरपि ।
सौन्दर्यं च मनोभवानपि बहून् कान्तिश्च कादम्बिनीं
श्रीमद्वेङ्कटभूधरेन्द्ररमणः कुर्याद्धरिर्मङ्गलम् ॥ २॥
नानारत्न किरीटकुण्डलमुखैर्भूषागणैर्भूषितः
श्रीमत्कौस्तुभरत्न भव्यहृदयः श्रीवत्ससल्लाञ्छनः ।
विद्युद्वर्णसुवर्णवस्त्ररुचिरो यः शङ्खचक्रादिभिः
श्रीमद्वेङ्कटभूधरेन्द्ररमणः कुर्याद्धरिर्मङ्गलम् ॥ ३॥
यत्फाले मृगनाभिचारुतिलको नेत्रेऽब्जपत्रायते
कस्तूरीघनसारकेसरमिलच्छ्रीगन्धसारो द्रवैः ।
गन्धैर्लिप्ततनुः सुगन्धसुमनोमालाधरो यः प्रभुः
श्रीमद्वेङ्कटभूधरेन्द्ररमणः कुर्याद्धरिर्मङ्गलम् ॥ ४॥
एतद्दिव्यपदं ममास्ति भुवि तत्सम्पश्यतेत्यादरा-
द्भक्तेभ्यः स्वकरेण दर्शयति यद्दृष्ट्याऽतिसौख्यं गतः ।
एतद्भक्तिमतो महानपि भवाम्भोधिर्नदीति स्पृशन्
श्रीमद्वेङ्कटभूधरेन्द्ररमणः कुर्याद्धरिर्मङ्गलम् ॥ ५॥
यः स्वामी सरसस्तटे विहरतो श्रीस्वामिन्नाम्नः सदा
सौवर्णालयमन्दिरो विधिमुखैर्बर्हिर्मुखैः सेवितः ।
यः शत्रून् हनयन् निजानवति च श्रीभूवराहात्मकः
श्रीमद्वेङ्कटभूधरेन्द्ररमणः कुर्याद्धरिर्मङ्गलम् ॥ ६॥
यो ब्रह्मादिसुरान् मुनींश्च मनुजान् ब्रह्मोत्सवायागतान्
दृष्ट्वा हृष्टमना बभूव बहुशस्तैरर्चितः संस्तुतः ।
तेभ्यो यः प्रददाद्वरान् बहुविधान् लक्ष्मीनिवासो विभुः
श्रीमद्वेङ्कटभूधरेन्द्ररमणः कुर्याद्धरिर्मङ्गलम् ॥ ७॥
यो देवो भुवि वर्तते कलियुगे वैकुण्ठलोकस्थितो
भक्तानां परिपालनाय सततं कारुण्यवारां निधिः ।
श्रीशेषाख्यमहीध्रमस्तकमणिर्भक्तैकचिन्तामणि
श्रीमद्वेङ्कटभूधरेन्द्ररमणः कुर्याद्धरिर्मङ्गलम् ॥ ८॥
शेषाद्रिप्रभुमङ्गलाष्टकमिदं तुष्टेन यस्येशितुः
प्रीत्यर्थं रचितं रमेशचरणद्वन्द्वैकनिष्टावता ।
वैवाह्यादिशुभक्रियासु पठितं यैः साधु तेषामपि
श्रीमद्वेङ्कटभूधरेन्द्ररमणः कुर्याद्धरिर्मङ्गलम् ॥ ९॥
॥ इति श्री वेङ्कटेश मङ्गलाष्टकम् सम्पूर्णम् ॥

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